🎯 असली जंग तो बच्चे के मन में होती है: कॉफी, केक और संस्कृति से जुड़ी एक सच्ची कहानी
डॉ. सुनील सिंह राणा द्वारा
1970 के दशक की बात है। जापान में कॉफी लगभग अनजान थी। वो पूरी तरह से चाय पीने वाला देश था।
Nestlé कंपनी ने जापान में कॉफी लॉन्च की, भारी विज्ञापन किए, छूट दी, प्रचार में करोड़ों झोंक दिए… लेकिन कुछ भी काम नहीं आया। लोग कॉफी की तरफ मुड़ ही नहीं रहे थे।
जबकि उत्पाद में कोई कमी नहीं थी:
- स्वाद बेहतरीन
- कीमत वाजिब
- पैकिंग आकर्षक
लेकिन इन सबके बावजूद, कॉफी जापानी लोगों की दिनचर्या का हिस्सा नहीं बन पा रही थी।
पारंपरिक मार्केटिंग असफल हो चुकी थी। इसलिए Nestlé ने एक अनोखा कदम उठाया।
उन्होंने एक बाल मनोवैज्ञानिक को सलाहकार के रूप में नियुक्त किया- क्लोटेयर रपाए (Clotaire Rapaille), जो उपभोक्ता मनोविज्ञान के विशेषज्ञ थे।
उनकी रिसर्च ने एक गहरी बात उजागर की:
लोग उन्हीं स्वादों और चीजों सेभावनात्मक रूप से जुड़ते हैं,जिनका अनुभव उन्होंने बचपन
जापान में चाय, पारंपरिक मिठाइयाँ, शर्बत- ये सब तो बचपन का हिस्सा थे, लेकिन कॉफी का कोई भावनात्मक रिश्ता नहीं था।
रपाए ने सलाह दी कि बड़ों को कॉफी बेचना बंद कीजिए- इसके बजाय बच्चों के लिए कॉफी-स्वाद वाली मिठाइयाँ और चॉकलेट लॉन्च कीजिए।
इसका मकसद था बच्चों की स्वाद इंद्रियों को बचपन से कॉफी से परिचित कराना- बिना उन्हें कॉफी पिलाए।
Nestlé ने बाजार में लाए:
- कॉफी-स्वाद वाली टॉफियाँ
- कॉफी-जेली जैसे डेज़र्ट
- कॉफी-चॉकलेट
- हल्के कॉफी फ्लेवर वाले मीठे स्नैक्स
परिणाम तुरंत नहीं मिले। लेकिन बीज बो दिया गया था।
1980 के दशक तक वही बच्चे बड़े हो चुके थे- तनाव भरी नौकरी, तेज़ जीवनशैली, और ऊर्जा की ज़रूरत।
अब Nestlé ने दोबारा जापान में इंस्टेंट कॉफी लॉन्च की- और इस बार कॉफी बूम बन गई।
2014 तक, जापान दुनिया के सबसे बड़े कॉफी-आयातक देशों में शामिल हो गया। और Nestlé वहां निर्विवाद लीडर बन चुकी थी।
🍰 यह कहानी हमें क्या सिखाती है?
जीवन के इतने वर्षों में मैंने ये महसूस किया है कि-
आज हम जरा सी खुशी पर भी केक काटते हैं-
जन्मदिन, शादी, परीक्षा में अच्छे नंबर, प्रमोशन, यहां तक कि सेवानिवृत्ति पर भी।
पर क्या आपने सोचा है कि आज से 100 साल पहले भारत में 90% लोगों को केक का नाम तक नहीं पता था?
हमारे जश्न होते थे - खीर, लड्डू, हलवा, पूड़ी, पंगत में भोज।
आज, हमारे बच्चों के जश्न हैं – पिज्ज़ा, केक, कोला, बर्गर और मॉल का आउटिंग।
क्यों?
क्योंकि हमने ही उनके बचपन में वो स्वाद, वो भावनात्मक जुड़ाव भर दिया।
बचपन की यादें सिर्फ स्वाद नहीं बनातीं- वो सांस्कृतिक जड़ें बनाती हैं।
🧠 असली जंग तो बच्चे के मन में होती है
Nestlé ने जापान में यही किया।
McDonald’s, Coca-Cola, और दूसरी कंपनियाँ भी यही कर रही हैं।
और हम, अनजाने में, अपने ही बच्चों को उनके ब्रांड्स के साथ भावनात्मक रूप से जोड़ रहे हैं।
इसलिए आज मैं यह बात पूरे विश्वास से कह सकता हूँ-
उनके स्वाद, उनकी भाषा, उनके त्योहार, उनकी कहानियाँ, उनके घर का माहौल…
ये सब तय करते हैं कि कल को वो कैसा इंसान बनेगा, और किस संस्कृति को अपनाएगा।
🌱 अब हम क्या कर सकते हैं?
मैं केक, कॉफी या कोला के खिलाफ नहीं हूँ।
मैं सिर्फ बेहोश उपभोग (unconscious consumption) के खिलाफ हूँ।
आइए थोड़ा जागरूक बनें।
अपने बच्चों के साथ वो संस्कार, वो परंपरा, वो स्वाद साझा करें जो हमारे पूर्वजों से हमें मिले हैं।
ताकि कल को हमारे बच्चे भी कहीं जाकर यह कह सकें-
“मेरे बचपन की सबसे प्यारी याद, माँ के हाथ की खीर थी… या दादी के बनाए लड्डू…”
आपकी क्या राय है?
कौन सा स्वाद या परंपरा आपको अपने बचपन की सबसे मधुर याद दिलाती है?
कॉमेंट करें- क्योंकि वही आपकी असली जड़ है।
Comments
Post a Comment